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19 वर्षीय विक्रमपाल सिंह का जज़्बा 1990 में ले पहुँचा अयोध्या - सगाई की झूठी कहानी बनाकर पुलिस से छूटे, मालगाड़ी के आगे सोकर रुकवाई ट्रेन फिर पहुँचे अयोध्या, पढ़िए उनकी ज़ुबानी

19 वर्षीय विक्रमपाल सिंह का जज़्बा 1990 में ले पहुँचा अयोध्या

सिरोही । 28 अक्टूबर 1990 को आबूरोड से निकले और ट्रेन का सफर तय कर दिल्ली पहुँचे, दिल्ली पहुँचते ही यह बताया गया कि मदनलाल खुराना की सभा में जाना है । सभा तो किसी कारणवश रद्द हो गई थी । भारी भीड़ के कारण पुलिस ने बल प्रयोग किया और हमें एक स्कूल में बंद कर दिया । 6 घंटे के बाद युवा साथियों के बीच में सब लोग गुफ्तगू कर रहे थे । अचानक मेरे मन में सवाल आया कि क्या स्कूल में बैठने आए हैं या अयोध्या जाने ? स्कूल में बंद सैकड़ों कार सेवकों से कहा अयोध्या चलना है तो मेरे साथ चलो । फिर युवाओं में जोश भरा और 5 फीट की दीवार को छलांग लगाई और वहां से भाग निकले । भारी पुलिस जाब्ते के बीच में बचते बचाते जैसे तैसे हम रेलवे स्टेशन पहुंचे और अवध एक्सप्रेस से अयोध्या के लिए निकल गए । आज भी उसी जोश को बरकरार रखते हुए 1990 में अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन में शामिल हुए 19 वर्षीय विक्रम पाल सिंह अपनी अयोध्या की घटना साझा करते हैं ।

मात्र 19 साल की उम्र में सिरोही के तमाम युवाओं का नेतृत्व करने वाले विक्रमपाल सिंह यहाँ से सबसे कम उम्र के युवा थे जो कारसेवा के लिए गए थे । वो बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा ने पूरे देश में माहौल बनाया और बताया कि रामल्ला तो टेंट में है और अयोध्या में जहां उनका स्थान है वहां तो बाबरी मस्जिद बनी हुई है । यह भाव सुनकर अचानक हमारे दिल में आया कि ऐसा कैसे हो सकता है, इससे पहले हमें कभी पता नहीं था कि रामलला टेंट में है ।

आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े होने के कारण तैयारी तो पहले से चल रही थी। उसी के बाद अयोध्या जाने का मानस बना लिया । तत्कालीन आरएसएस प्रचारक जगदीश जी की काफी प्रेरणा रही । प्रचारक को बताने के बाद अपनी माताजी को बताया कि मुझे राम जन्मभूमि आंदोलन में जाना है तो पहली बार तो माताजी ने साफ तौर पर मना कर दिया, फिर संघ के भाईसाहब का हवाला देकर उन्हें मना ही लिया । उन्होंने फिर भी कहा कि तेरे पापा से लैंडलाइन फोन से एक बार बात करके पूछ ले । उनके पिता रामाश्रय सिंह का उन दिनों जोधपुर में तहसीलदार के पद पर पदस्थापन हो रखा था ।

अयोध्या जाने के लिए अपने साथी आनंद मिश्रा, दलपत माली, पुष्पकांत माली, मांगीलाल रावल सहित कुल 5 जनो की टिकट लाई । कानपुर क्रॉस करते ही ट्रेनों में पुलिस चढ़ी और कारसेवकों को पकड़ कर अयोध्या जाने से रोक रही थी । पहले तो थोड़े से घबराए फिर हमने हमारी सूझबूझ दिखाई और दुपट्टों को जल्दी से अपने-अपने बैगों में डालकर एक यात्री की तरह बैठ गए ।

पुलिस ने पकड़े दो साथी, हाज़िर जवाबी से छुड़ाए

सिंह ने बताया कि ट्रेन लखनऊ रुकी और चप्पे चप्पे पर खड़ी पुलिस से एक बार फिर हमारे कदम रुक गए । मगर तंग गली से मैं, दलपत माली व पुष्प कांत माली निकल गए। तभी पता चला कि हमारे दो अन्य साथी आनंद मिश्रा और मांगीलाल रावल को पुलिस ने पकड़ लिया है ।तभी मैंने तुरंत पुलिसकर्मियों के पास पहुंचकर लखनऊ में अपने माँ के यहां जाने की बात कही । पुलिस ने कहा कि हमें बेवकूफ मत बना तभी मेरे मुंह से निकला कि मेरी इंगेजमेंट है और मैं मेरी सगाई के लिए मेरे दोस्तों के साथ लखनऊ आया हूं । हम कोई कार सेवा में नहीं जा रहा है चाहे तो आप मेरे मामा रामकरण सिंह से फोन पर पूछ ले । हाजिर जवाब से मेरी बातों पर विश्वास करते हुए पुलिस ने वहां से सबको रवाना कर दिया। कुछ दूर जाकर अचानक रविवार के दिन का अखबार हाथ में लगा तो फिर एक नया संकट सामने खड़ा हो गया । अखबार के फ्रंट की एक ही खबर थी कि लखनऊ में रात्रि 8 बजे से कर्फ्यू है, जो जहां है, वहीं अपनी सुरक्षा करते हुए छिप जाए। फिर ऑटो लेकर हम अपने मामा के घर जा पहुंचे।


मामा ने कहा वापस लौट जाओ, पर नहीं माने

उन दिनों पुलिस हर घर की तलाशी ले रही थी और घर खुला खुला कर यह पूछ रही थी कि कहीं कार सेवक तो नहीं छुपे हैं मगर मेरे मामा ने पुलिस को बताया कि मेरा भांजा आया है यहाँ कोई कार सेवक नहीं है। फिर मामा ने सुबह समझाया कि मुलायम सिंह की सरकार के सख्त पहरे के बीच आप अयोध्या नहीं जा सकते हो । मेरी बात मानो तो वापस घर चले जाओ । लेकिन हम लोग नहीं माने और मामा से कहा कि हमें बताओ कि अयोध्या कैसे जाएं । फिर मामा ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेई की सभा होने वाली है वहां तक मैं आप लोगों को छोड़ दूंगा आगे तुम तुम्हारा देख लेना। मैं फिर तुमसे कह रहा हूं कि तुम वापस चले जाओ। मगर मैं और मेरे साथी कोई नहीं माने हमारे मन में एक ही धुन सवार थी कि अयोध्या कैसे पहुंचे। हम सभा में पहुंचे और वहां हजारों कार सेवक पहले से अटल बिहारी वाजपेई का इंतजार कर रहे थे । मगर वहां पहुंचने के बाद पता चला कि वाजपेई को तो हवाई अड्डे पर पहले ही गिरफ्तार कर लिया। ऐसे में कार सेवकों में जोश दुगना हो गया । वहां से हमने कुछ चने के पैकेट लिए और रेलवे ट्रैक पकड़कर करीब 30 किलोमीटर अयोध्या की तरफ निकल गए । देखते-देखते हमारे पीछे करीब 500-600 लोग थे और हम लोग ग्रुप में आगे बढ़ते रहे।


रेलवे ट्रेक पर सोकर रुकवाई मालगाड़ी से पहुँचे अयोध्या

सामने से आ रही ट्रेन को देखकर सभी कार सेवक रेलवे ट्रैक पर लेट गए और ट्रेन को रोकने की कोशिश की । फिर मालगाड़ी रुकी और पता लगाया कि मालगाड़ी अयोध्या से आगे सुल्तानपुर जा रही है और हमने ठान लिया कि अब इस मालगाड़ी के अलावा हमारा कोई अयोध्या पहुंचने का साधन नहीं है। ट्रेन जैसे ही अयोध्या के आसपास पहुंची तो हमारी सूझबूझ से हमने ट्रेन को रुकवाया और आसपास के गांव में चले गए । गांव वालों को जैसे ही पता चला कि कार सेवक आए हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और हमारा ऐसा स्वागत किया जैसे कि हम सीमा के सैनिक है और हम कोई बहुत बड़ा युद्ध जीत कर हमारे घर लौटे। सुबह उठते ही गांव वालों के साथ हमें जो जैसा साधन मिला, अयोध्या की तरह निकल गए।

चारों तरफ़ खूनी मंज़र, पुलिस ने पकड़ा

अयोध्या में उमा भारती, लालकृष्ण आडवाणी व अशोक सिंघल की सभा में पहुंचे । वहां ऐलान हुआ कि सब लोग राम कीर्तन करते हुए विवादित ढांचे की तरफ बढे। कुछ देर में पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले और फायरिंग शुरू कर दी। ऐसे में एकाएक वहां पर भगदड़ मच गई। सब लोग इधर-उधर अपनी जान बचा रहे थे । हम भी एक दीवार की तरफ कूद कर छुपे तो देखा चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ था। फिर हम इसके बाद दिगंबर अखाड़ा पहुंचे वहां पर भी पुलिस आई और हमको पकड़कर अयोध्या से बाहर ले गई। उसके कुछ दिन बाद वापस अपने घर लौटे ।

19 वर्षीय विक्रमपाल सिंह का जज़्बा 1990 में ले पहुँचा अयोध्या

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