मौत के 13 साल बाद रिटायर्ड आईपीएस को मिला न्याय, पत्नी और बेटे बेटियों ने लड़ी लंबी कानूनी लड़ाई - वर्ष 1991 में सेवानिवृत्त हुए थे जेल आईजी रामानुज शर्मा, केस लड़ते लड़ते वर्ष 2010 में हुआ निधन, अब मिला है न्याय
जयपुर। अधिकतर लोग पुलिस की नौकरी में इसलिए आते ताकि वे जरूरतमंद व्यक्ति को त्वरित न्याय दे सके लेकिन कई बार ऐसे मौके आते हैं जब खुद पुलिस अधिकारी को न्याय पाने में पूरी जिन्दगी लग जाती है। राजस्थान के एक रिटायर्ड आईपीएस के साथ ही हुआ। रिटायरमेंट के एक दिन पहले 14 साल पुराने मामले में चार्जशीट मिली। चार्जशीट का जवाब देने के बाद भी मामला कई सालों तक चलता रहा। रिटायरमेंट के 9 साल बाद सरकार ने पेंशन कटौती की सजा दे डाली। इस सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी और 10 साल तक सुनवाई चलती रही। परिवादी आईपीएस की मौत हो गई लेकिन उनके जिन्दा रहते उन्हें न्याय नहीं मिला। पहले पत्नी ने केस लड़ा और पत्नी की मौत के बाद बेटे बेटियों ने केस लड़ा। मौत के 13 साल बाद अब दिवंगत आईपीएस को न्याय मिला है।
रिटायरमेंट से एक दिन पहले थमाई चार्जशीट
आईपीएस रामानुज शर्मा वर्ष 1991 में जेल आईजी थी। जून 1991 में सेवानिवृत्ति से ठीक एक दिन पहले उन्हें 14 साल पुराने मामले में चार्जशीट थमाई जाती है। उन पर आरोप लगता है कि उन्होंने वर्ष 1976 में दो गार्डों के खिलाफ द्वेषतापूर्वक कार्रवाई की। वर्ष 1999 में राज्य सरकार ने रामानुज शर्मा को दो साल तक पेंशन में 5 प्रतिशत की कटौती की सजा दे दी। रामानुज ने इस सजा के विरोध में राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका लगा दी।
पहले पत्नी ने और फिर बेटे बेटियों ने लड़ा केस
राज्य सरकार द्वारा पेंशन में कटौती की सजा से दंडित करने पर रिटायर्ड आईपीएस रामानुज ने कोर्ट में लड़ाई लड़ना शुरू किया। इस दौरान वर्ष 2010 में उनका निधन हो गया। रामानुज की मौते के बाद उनकी पत्नी ने केस लड़ा लेकिन कुछ सालों बाद पत्नी का भी निधन हो गया। बाद में रामानुज के बेटे और बेटियों ने केस लड़ा। रामानुज की मौते के 13 साल बाद अब उन्हें हाई कोर्ट से न्याय मिला है। कोर्ट ने रामानुज के परिजनों की याचिका को स्वीकार करते हुए उन्हें दी गई चार्जशीट और सजा को निरस्त कर दिया।
पिता के सम्मान के लिए लड़ी कानूनी लड़ाई
अपील दायर होने के करीब 32 साल बाद अपने दिवंगत पिता के हक में फैसला आने पर उनकी बड़ी बेटी रितु शर्मा ने कहा कि हमें खुशी है कि सच्चाई की जीत हुई। हमारे पिता को राजनीतिक द्वेषता के चलते फंसाया गया। उन्हें जानबूझकर रिटायरमेंट से एक दिन पहले 14 साल पुराने मामले में चार्जशीट दी गई। रितु ने कहा कि पिता के जाने के बाद हमारी माताजी चंद्रकांता शर्मा ने इस केस को लड़ा। मां के निधन के बाद हम चारों बहनों और हमारे भाई ने यह तय किया कि हम इस केस को आगे भी लड़ेंगे, क्योंकि हमारे लिए यह पिता के सम्मान की बात थी।
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