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'हम नेतृत्व परिवर्तन के लिए दिल्ली गए थे' सचिन पायलट ने पहली बार स्वीकार किया इस बात को - अब तक कहते रहे कि कार्यकर्ताओं को हक दिलाने के लिए गए थे मानेसर

'हम नेतृत्व परिवर्तन के लिए दिल्ली गए थे' सचिन पायलट ने पहली बार स्वीकार किया इस बात को



जयपुर। जब से कांग्रेस राजस्थान की सत्ता पर काबिज हुई है तब से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान चल रही है। सीएम की कुर्सी के लिए ही यह जंग 11 दिसंबर 2018 को चुनाव जीतते ही शुरू हो गई थी। चुनाव जीतने के बाद सत्ता का लीडर तय करने में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को 5 दिन लगे। गहलोत और पायलट दोनों मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष करते रहे। आखिर में कांग्रेस नेतृत्व ने गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाने का निर्णय सुनाया। तब ऐसा माना जा रहा था कि ढाई साल बाद पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। करीब डेढ़ साल तक सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री की भूमिका में रहे लेकिन बाद में उनका मन ऊब गया और वे अपने समर्थकों के साथ राजस्थान छोड़ गए।

 

कार्यकर्ताओं को हक दिलाने के लिए गए थे मानेसर

 

जुलाई 2020 में जब सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक राजस्थान छोड़कर होटल मानेसर चले गए थे। तब गहलोत सरकार की सांसे अटक गई थी। सरकार गिरने की नौबत आने और सचिन पायलट द्वारा बगावत करने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें उपमुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष के पद से बर्खास्त कर दिया था। उनके साथ गए दो मंत्रियों को भी उनके पद से बर्खास्त किया। पूरे एक महीने की जद्दोजहद के बाद गहलोत सरकार बची। पायलट और उनके समर्थक विधायक अब तक यही कहते रहे कि सत्ता और संगठन में मेहनती कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान नहीं मिला। इसी वजह से वे नाराज थे। जिन कार्यकर्ताओं ने विपक्ष में रहने के दौरान सड़कों पर संघर्ष किया। लाठियां खाई और जी तोड़ मेहनत की। उन्हें उनका हक दिलाने के लिए वे मानेसर गए थे।

 

पहली बार पायलट ने स्वीकारा कि नेतृत्व परिवर्तन के लिए गए थे मानेसर

 

मंगलवार 9 मई को सचिन पायलट जयपुर स्थित अपने आवास पर मीडिया से रूबरू हुए। इस दौरान उन्होंने पहली बार इस बात को स्वीकार किया कि वे और उनके साथी राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे। यही बात रखने के लिए वे दिल्ली गए और अपनी बात केन्द्रीय नेतृत्व के सामने रखी। पायलट का दावा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बातों को गंभीरता से सुना और उन पर अमल करने का वादा किया। पायलट के इस बयान से यह साफ हो गया कि पिछले तीन साल तक वे जो बातें मीडिया में कह रहे थे। वह सही नहीं थी। पायलट और उनके समर्थित विधायक कार्यकर्ताओं के मान सम्मान के लिए नहीं बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बगावत की थी।

 

मैं किसी के खिलाफ ये कदम नहीं उठा रहा - पायलट

 

पिछले महीने जब सचिन पायलट ने एक दिन के अनशन का कदम उठाया तो यह खबर मीडिया की सुर्खियां बनी कि पायलट अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं। तब सचिन पायलट ने कहा कि वे सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं। अब पायलट जन संघर्ष यात्रा निकालने जा रहे हैं। यात्रा से पहले पायलट ने फिर कहा कि यह यात्रा किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि जनता के मूलभूत मुद्दों और नौजवानों के पक्ष में निकाली जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की उन्हें कोई उम्मीद नहीं है लेकिन जनता भगवान है। इसलिए जनता के बीच जाकर उनके मूल मुद्दों को उठाते हुए उनकी आवाज को बुलंद किया जाएगा। इस यात्रा का मकसद जनता की बात सुनकर उनकी आवाज बनना है।

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