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राजस्थान में टू-पार्टी सिस्टम सक्सेस - तीसरी पार्टियों का गठन पहले भी हुआ लेकिन कामयाबी नहीं मिली

राजस्थान में टू-पार्टी सिस्टम सक्सेस

 

 

जयपुर। राजस्थान के राजनैतिक गलियारों में एक नई राजनैतिक पार्टी के गठन की चर्चाएं जोरों पर है। हालांकि इसकी तस्वीर अभी साफ नहीं है लेकिन पिछले कई दिनों से ऐसी खबरें सुर्खियों में रही है जिनमें सचिन पायलट द्वारा नई पार्टी बनाए जाने के सामाचार थे। सचिन पायलट अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से रुखसत चल रहे हैं। केवल पार्टी के स्तर पर नहीं बल्कि सड़कों पर आन्दोलन कर चुके हैं। कई बार हाईकमान को अपनी बात कहने के बावजूद अब तक पायलट की एक भी बात को नहीं माना गया। ऐसे में ये खबरें आने लगी कि पायलट कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना सकते हैं।

 

तीसरी पार्टी का फार्मूला कारगर नहीं रहा

 

राजस्थान में पिछले 33 सालों से एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकारें बनती रही है। हर पांच साल में सरकारें बदलती रही है। भले ही सरकार ने कितनी ही अच्छी योजनाएं लांच क्यों ना की हो लेकिन जनता ने लगातार दो बार शासन करने का अवसर नहीं दिया। यही टू-पार्टी सिस्टम जारी है। बीजेपी और कांग्रेस को चुनौती देते हुए बीते कुछ सालों में तीसरी पार्टियों का गठन भी हुआ लेकिन तीसरी पार्टियां बीजेपी कांग्रेस को टक्कर नहीं दे पाई। एक पार्टी तो अपना खाता भी नहीं खोल पाई जबकि दो पार्टियों के महज तीन से चार प्रत्याशी ही जीत दर्ज करा सके। सिर्फ 3-4 चार सीटों से कांग्रेस और बीजेपी को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। लिहाजा तीसरी पार्टी के गठन के समाचारों को कोई भी पार्टी अहमियत नहीं देती है।

 

2013 में बनी थी नेशनल पीपुल्स पार्टी

 

मीणा समाज के कद्दावर नेता और वर्तमान में बीजेपी से राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने वर्ष 2008 में भाजपा का दामन छोड़ दिया था। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों से पहले डॉ. मीणा नेशनल पीपुल्स पार्टी का झंडा लेकर आए और राजस्थान कांग्रेस बीजेपी को चुनौती देने लगे। एनपीपी के टिकट पर डॉ. किरोड़ी लाल मीणा स्वयं, उनकी पत्नी गोलमा देवी, गीता वर्मा और नवीन पिलानिया ने चुनाव जीता और विधायक बन गए। पांच साल तक डॉ. किरोड़ी लाल मीणा सहित अन्य नेता एनपीपी में रहे लेकिन बाद में स्थितियों को भांपते हुए डॉ. मीणा की घर वापसी हुई। वे फिर से भाजपा में शामिल हो गए। उनके साथ गोलमा देवी और गीता वर्मा भी बीजेपी में आ गई।

 

2018 में बनी थी भारत वाहिनी पार्टी

 

वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी से राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने वर्ष 2018 के चुनावों से पहले भारत वाहिनी पार्टी का गठन किया था। वर्ष 2013 से 2018 तक वसुंधरा राजे के शासनकाल में घनश्याम तिवाड़ी और राजे की पटरी नहीं बैठी। दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी रहे। तिवाड़ी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सरकारी बंगले के बाहर धरना भी दिया था। बाद में तिवाड़ी ने भाजपा का दामन छोड़ा और भारत वाहिनी पार्टी का गठन किया। इस पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष तिवाड़ी ने अपने बेटे को बनाया था। तिवाड़ी स्वयं सांगानेर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई। बाद में भारत वाहिनी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में चले गए। करीब साल भर तक कांग्रेस में रहे लेकिन कांग्रेस के किसी कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बने। बाद तिवाड़ी की भी घर वापसी हो गई और वे बीजेपी में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट लेकर चुनाव लड़ाया और वे राज्यसभा सांसद बन गए।

 

2018 में बनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी

 

मारवाड़ के युवा जाट नेता के रूप में विख्यात हनुमान बेनीवाल कभी बीजेपी में हुआ करते थे लेकिन उनके बोलने और काम करने का अंदाज अलग है। बीजेपी के साथ उनकी पटरी नहीं बैठी तो अक्टूबर 2018 में हनुमान बेनीवाल ने नई पार्टी का गठन किया। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का झंडा लेकर बेनीवाल ने 2018 के विधानसभा चुनावों में ताल ठोकी। बीजेपी और कांग्रेस को टक्कर देने का आह्वान करने वाले बेनीवाल की पार्टी के सिर्फ तीन विधायक बने जिनमें एक बेनीवाल स्वयं थे। इनके अलावा पुखराज गर्ग और इंदिरा देवी भी आरएलपी से विधायक बनी। वर्तमान में हनुमान बेनीवाल नागौर से लोकसभा सांसद हैं। इस बार फिर वे चुनावी मैदान में ताल ठोकने वाले हैं लेकिन कोई तीसरा मोर्चा सत्ता तक पहुंचे, ऐसी संभावना नजर नहीं आ रही है।

 

राजस्थान में तीसरे मोर्चे का कोई भविष्य नहीं

 

राजनैतिक विश्लेषक मिथिलेश जैमिनी का कहना है कि राजस्थान में तीसरे मोर्चे का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है। अगर कोई नेता बीजेपी या कांग्रेस से नाराज होकर नई पार्टी बना भी ले तो वे कांग्रेस और भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। बड़े बड़े वर्ग किसी नेता के बजाय पार्टी के साथ ज्यादा खड़े हैं। पांच सात विधानसभा सीटों पर कोई नेता अपना अच्छा प्रभाव दिखा सकता है लेकिन व्यापक स्तर पर जीत हासिल करके सत्ता तक पहुंच सके। ऐसी कोई संभावनाएं दिखाई नहीं दे रही है। 

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